Sunday, December 12, 2010

जंदगी के कस्से भी बड़े अजीबोगरीब हैं
सुकून जो देते नहीं वो आपके करीब हैं
हर शख्स तो होता नहीं मेरी तरह
क कह दए कुछ भी और गले की न उम्मीद है
वक्त-वक्त की बात है जो हंसते हैं हमारी तन्हाई पर
ये वक्त ही है जो कल मेरे साथ था, आज उसकी खुशी में शरीक है



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Saturday, December 11, 2010

कुछ तजुबेर् तो कुछ एहसास। कुछ समझना तो कुछ समझकर भी न समझने की कोशश करना। कहीं आस तो कहीं बल्कुल टूट जाना। मोतयों की तरह समय के दानों को बटोरना और नए सरे से फर परोना। शायद यही क्रम है, यहीं नरतंरता है, यही श्रृद्धा है और यही...यही है एक नश्चय, नश्चय कुछ करने का, कुछ देने का, कुछ सपनों का और शायद कहीं न कहीं टूटने का भी। मगर टूटकर फर नए सरे से जुड़ना ही समय है। समय वतर्मान है, वतर्मान जीवन है और जीवन कत्तर्व्य और जम्मेदारी का नाम है। इसी का नाम जंदगी है। कभी ठहरकर जओ, कभी चलकर जओ। रोकर जओ, कभी हंसकर जओ। कुछ पाकर जओ तो कभी खोकर जओ। जीकर जओ, कभी मरकर जओ मगर जरूर क्योंक
जीके गर देखोगे तो खुद को पा जाओगे कभी जरूर
क्योंक वक्त के साथ अच्छे-अच्छों ने तराशा है खुद को
कई बातों को कहने के लए शब्द ही बेहतर माध्यम होते हैं। इनके जिरए अपने दल की भड़ास नकाली जा सकती है। ये भड़ास पारवारक समस्याओं, आफस की कचिपच या आपके आसपास होने वाले गितिविधयों से संबंधत हो सकती है। कई बार ऐसे लोग आपके साथ होते हैं जनसे आप सबकुछ शेयर कर सकते हैं मगर कई बार कुछ भी बात शेयर करन के लए दो बार सोचना पड़ता है। इसीलए मैं ये ब्लॉग राइटंग शुरु कर रही हूं। जहां मैं अपनी बात कहकर और दूसरों की पसंद आने वाली बात सभी के साथ शेयर करके सुकून महसूस करूं।

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